सत्य कथा ___ वो मुझे रंडी का बेटा कहते, मैंने पढ़कर जवाब दिया . 1980 के दशक में जब कोठों की संस्कृति समाप्त हो रही थी मैं मुंबई के कांग्रेस हाउस और कोलकाता की बंदूक गली में बड़ा हो रहा था जहां लोग नाचने वाली महिलाओं पर दस-दस के नोट उड़ाया करते थे. यहां काम करने वाली औरतों को कोई तवायफ़ कहता, कोई बैजी, कोठेवाली, कमानेवाली लेकिन सभी के लिए एक साझा शब्द रंडी भी इस्तेमाल किया जाता. नाचने वाली ये महिलाएं सेक्स वर्कर नहीं थी लेकिन उनके पास आने…
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