बहुत समय पहले की बात है की एक जंगल मे नदी के किनारे एक बन्दर और एक मगरमच्छ रहता था | बन्दर जंगल के मीठे फल को खाता रहता था और हमेसा मस्त रहता था | एक दिन मगरमच्छ के दिमाग मे आईडिया आया की यह बन्दर इतना मीठा फल खाता है , तो इसका कलेजा कीतना मीठा होगा | उसने बन्दर के कलेजे को खाने का प्लान बनाया |
परिश्रम का फल – जार्ज स्टीफेंस की कहानी
एक दिन जब बन्दर नदी के किनारे आया तो मगरमच्छ ने उसको लोभ दिया और बोला भाई बन्दर नदी के उस पार बहुत ही सुन्दर और मीठे फल के पेड़ है | बंदर ने पूछा आप को कैसे पता तो मगरमच्छ ने जबाब दिया की मैंने वहाँ के बंदरो को फल खाते देखा है | तुम तो मेरे दोस्त की तरह हो , तो मैंने सोचा की तुम को भी बता दू | बन्दर बहुत ही लालची था और कुछ भी करने को तैयार था | उसने मगरमच्छ से बोला की भाई मे उस पार कैसे जाऊंगा , इस पर मगर ने बोला – भाई ये तुम्हारा दोस्त किस दिन तुम्हारे काम आएगा | मे तुम को उस पार लेकर जाऊंगा , बन्दर बहुत की खुश हुआ | वह जाकर मगरमच्छ की पीठ पर बैठ गया और बोला चलो दोस्त | मगरमच्छ जब नदी के बीच मे पंहुचा तो रुक गया और बोला तुम इतने मीठे फल खाते हो तो तुम्हारा कलेजा भी खूब मीठा होगा | मैं तुम्हारा कलेजा खाना चाहता हु | बन्दर दर गया और बोला भाई मुझको माफ़ कर दो और मुझको चोर दो , लेकिन वह नहीं माना | बन्दर मन ही मन सोचने लगा काश मैंने कोई लालच नहीं किया होता तो आज जिन्दा होता |
Bahot badiya. Ye kahani ne school time ki yade dila di. Thanks for sharing 🙂
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